YATHAARTH

मूलरूप से झालावाड़, राजस्थान के रहने वाले श्री परमानन्द भाईला भारती जी की यह पुस्तक “यथार्थ” सही मायनों में समसामयिक सन्दर्भों, आधुनिक परिवेश और जीवन दर्शन पर लिखा गया एक ऐसा अनूठा काव्य संग्रह है जिसमें समाज में व्याप्त बाहरी आडम्बरों, कर्मकाण्ड आधारित झूठी प्रवंचनाओं, जाति व धर्म आधारित सामाजिक विषमताओं पर निर्मम कटाक्ष तो किया ही गया है साथ ही प्रेम, करुणा, संवेदनशीलता, उदारता व सामाजिक समरसता जैसे भावों को व्यक्तिगत जीवन में आचरण में लाने की प्रेरणा भी दी गयी है। श्री परमानन्द जी की रचनाओं की भाषा सरल व सहज है। श्री परमानन्द जी हिन्दी, उर्दू के साथ-साथ भावों के स्पष्ट प्रकटन के लिए आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करने से भी नहीं हिचकते हैं। कहीं- कहीं श्री परमानन्द जी द्वारा हिन्दी भाषा के क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से हमें इनके व्यापक शब्द-कोष के विषय में पता स्वाभाविक और सहज बनाये रखा है। साहित्यिक दृष्टिकोण से श्री परमानन्द जी की यह कृति इसलिए भी उल्लेखनीय और विशिष्ट चलता है। इन्होंने अपनी कविताओं में नए भावों, विचारों और बिम्बों का प्रयोग करते हुए भी कविता के प्रवाह को है कि इसमें इन्होंने एक नयी तरह की काव्य रचना विधा “पंक्ति-युग्म” को जन्म दिया है। यह स्वयं में श्री परमानन्द जी की रचनाशीलता का अनुपम उदाहरण है। पंक्ति-युग्मों के माध्यम से जब श्री परमानन्द भाईला जी सामाजिक सरोकारों और व्यवस्थाओं में सुधार की संभावनायें व्यक्त करते हैं तो हमें इनके भावों और शैली में कहीं-कहीं कबीर पंथी विचारधारा की झलक भी दिखाई दे जाती है जिससे इनकी कलम की निडरता और प्रखर होती प्रतीत होती है। ~~

     

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