इस पुस्तक “रास्तों का सफ़र ज़िन्दगी” में श्री हाडा जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से जहाँ एक ओर मानव को स्वयं के अस्तित्व को पहचान कर आगे बढ़ने का संदेश दिया है, वहीं दूसरी ओर अपनी प्रचलित शैली में बाहरी आडम्बरों और आधारहीन परम्पराओं का पुरज़ोर विरोध भी किया है। समाज में वैसे तो हर सम्प्रदाय, हर संगठन अपना-अपना ही एक सत्य स्थापित कर लेता है और शेष समाज से आँखें बंदकर उसी सत्य पर विश्वास करने की अपेक्षा भी करता है। श्री हाडा जी ने हर मान्यता, हर आस्था को तर्क और विवेक की कसौटी पर कसने और उस परम सत्य को समझने का प्रयास करने पर बल दिया है।