DO SHABDON KE BEECH

जीवन के कैनवास पर समय-समय पर बिखरते-निखरते सुख और दुःख के दो रंग, किसी नदी के दो किनारों की वह विवशता; जो शायद बस एक दृष्टा की तरह एक दूसरे की स्थितियों-परिस्थितियों के साक्षी ही बन सकते हैं; सहभागी नहीं, वसंत की किसी जाग उठी सुबह के उत्सव में शामिल अनगिनत रंगीनियाँ और पतझड़ों के एकाकीपन में दूर से दूर तक पसरे सन्नाटों का सूनापन, अंधेरों की उदासी और उजालों की मुस्कानें, इस नाशवान शरीर की क्षणभंगुरता जैसे बहुत से भावों पर लिखी गयी रचनाओं का संकलन है श्री कृष्ण सिंह हाडा जी द्वारा लिखी गयी पुस्तक “दो शब्दों के बीच”। इन रचनाओं में जीवन की मिठास भी है तो यथार्थ की कड़वाहट भी, कहीं किसी प्रेयसी की खनकती हंसी भी है तो कहीं अपने प्रेमास्पद की बेवफ़ाई से आहत किसी प्रेमी की आँखों से ढलते आँसू भी, कहीं राजनीतिक विसंगतियों, सामाजिक सरोकारों और झूठे रिश्तों पर टिप्पणियाँ भी हैं तो कहीं हल्के-फुल्के अंदाज़ में कही गयी गुदगुदाती बातें भी। श्री कृष्ण सिंह जी ने अपनी रचनाओं में ना सिर्फ़ जीवन में प्रेम, उदारता, निश्छल स्वभाव पर ज़ोर दिया है बल्कि बाह्य आडम्बर, दिखावे-बनावटीपन, समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों पर तार्किक विश्लेषण करते हुए कटाक्ष भी किया है। इन रचनाओं में हिंदी, अरबी, उर्दू, फ़ारसी के साथ-साथ कुछ ऐसे शब्द भी मिलते हैं जो सामान्यतः मूलधारा की हिंदी कविताओं में नहीं पाये जाते जो कि इनकी रचनात्मकता के साथ-साथ प्रयोगधर्मिता का भी अप्रतिम उदाहरण है, इतना सब होने के बावजूद भी आप पाएंगे कि भाषा की सरलता, सहजता और भाव की व्यापकता पर विशेष ध्यान दिया गया है।

     

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