एक साहित्यकार का धर्म निभाते हुए कवि कृष्ण सिंह जी हाड़ा, ‘लोकानुकीर्तनम् काव्यम्’ के मन्तव्य पर खरे उतरते हुए जनमंगल को साधने में इस काव्य संग्रह में सफल रहे हैं। उनकी कविताओं में सादगी है, सत्य की धार है, निष्काम कर्मयोग की प्रेरणा है, झूठ पर प्रहार है, राष्ट्रीयता के स्वर हैं, जीने का आधार है, जीवन की क्षणभंगुरता का स्मरण है, प्यार एवं विश्वास में आस्था है, बुध से बुद्ध बनने की चाह है, मुश्किलों से लड़ने का हौसला हैं, साहित्य एवं समाज का सूत्रबंधन है, आदमी और कविता की पूरकता है, विसंगतियों को सुसंगतियों में बदलने का सामर्थ्य है, धर्म एवं अध्यात्म के सही मायने हैं, प्रेम की पुकार है, मानवता का लक्ष्य है तथा जीवन की परिभाषाएँ हैं। सारी कविताएँ जनमानस की व्याकुलता के प्रकटीकरण का प्रयास हैं। एक सुंदर एवं स्वस्थ समाज की संरचना के स्वप्न का साकार स्वरूप है। कवि निस्सन्देह लोकचेतना से साक्षात्कार में सुसिद्ध रहे हैं।